भोजपरी गीत सम्राट पं० राधा मोहन चौबे (अंजन जी)

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भोजपरी गीत सम्राट पं० राधा मोहन चौबे (अंजन जी) का जन्म अगहन शुक्ल द्वाद्वशी रविवार सम्बत 1995 दिनांक 4/12/1938 को बिहार के गोपालगंज जिलान्तर्गत भोरे थाना के शाहपुर-डिघवा के चतुर्वेदी कुल के सम्भ्रान्त परिवार में हुआ। इसलिए संस्कार में माँ सरस्वती की आराधना परम्परा से जुड़ी थी। बाद में वे अपने ननिहाल के गाँव अमहीं बांके, थाना कटेयां, जिला : गोपालगंज में स्थाई रूप से बस गये और अब यहीं के होकर रह गये है।

पं० राधा मोहन चौबे (अंजन जी)
पं० राधा मोहन चौबे (अंजन जी)

‘अंजन जी’ नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। भोजपुरी मानस मण्डल में परिव्याप्त यह नाम देश-महादेश की सीमाओं को लांघकर अफ्रीका जैसे सुदुर महादेश की धरती पर रचे-बसे भोजपुरी भाइयों के अन्तरमन में प्रवेश कर चुका है। लोकप्रिय अंजन जी बाल्यकाल से ही प्रतिभा सम्पन्न एवं कुशाग्र बुद्धि के धनी रहे हैं। आदि काव्य गुरू पं० धरीक्षण मिश्र, बरियारपुर तमकुहीं देवरिया एवं स्वनाम धन्य पं० लक्ष्मण पाठक प्रदीप के स्नेह एवं आशीर्वाद से दसवीं कक्षा तक विद्यार्थी जीवन में आते-आते एक सशक्त रचनाकार के रूप में जाने माने हो गये।

हाई स्कूल कटेया (गोपालगंज) से सन 1957 में बोर्ड की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उर्तीण होने पर पुरस्कृत भी किए गये। ज्ञातव्य है कि अंजन जी ने किसी भी परीक्षा में नकल का सहारा नही लिया। अपने स्वतंत्र अध्ययन एवं मेधा के बल पर उर्तीण हुए द्विवर्षीय शिक्षक प्रशिक्षण की परीक्षा में इन्हे बिहार में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान मिला।

इनकी काव्य प्रतिभा एवं आदर्श शिक्षकत्व की योग्यता से प्रथम स्थान मिला। इनकी काव्य प्रतिभा एवं आदर्श शिक्षकत्व की योग्यता से प्रसन्न होकर इन्हे इनकी इच्छा के अनुरूप वैशाली की ऐतिहासिक नगरी में पदस्थापित किया जहाँ अपने समय के लब्ध प्रतिष्ठ I.C.S. श्रीधर वासुदेव सोहनी और I.C.S. श्री जगदीश चन्द्र माथुर जैसे आई०सी०एस० पदाधिकारियों का आत्मीय स्नेह मिला।

30 जून 1962 से आकशवाणी, पटनी से भोजपुरी गीतकार के रूप में सम्बद्ध हुए। 19 अगस्त 1959 से शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्राचार्य, प्रखण्ड शिक्षा अधिकारी, क्षेत्र शिक्षा पदाधिकारी (सम्बर्ग 2) आदि पदों पर कार्यरत रहे। 1 फरवरी 1998 से सेवा-निवृत्त होकर अपने घर पर सुख शान्तिमय जीवन व्यवतीत कर रहे हैं। यह संग्रह ‘चोख-चटकार’ उनका पच्चीसवा प्रकाशन है जो भोजपुरी के विकास में एक कीर्तिमान स्थापित करता है।

प्रतिभा के धनी अंजन जी शिक्षक क्यों बने इसकी भी एक कड़ी है। ज्ञातव्य है कि बहुमुखी आयामों से जुड़े अंजन जी विद्यार्थी जीवन के बाद किसी भी जीवन क्षेत्र में नियुक्त हो सकते थे, मगर पिता के पाँच भाइयों के वीच के एक मात्र पुत्र थे जो माता-पिता की सेवा करते। एक चचेरी बहन और एक सगी बहन के सिवा उस परिवार में और कोई नहीं था। जो बुढ़ापे में काम आता। बहुत सोच-विचार कर संस्कार एवं धर्म की रक्षा एक मात्र शिक्षक रूप में ही कुलीन धर्मपथ की रक्षा हो सकती थी, ऐसे प्रतिभा सम्पन्न छात्र के लिए कर्म क्षेत्र का हर दरवाजा खुला हुआ था।

अंजन जी अच्छे कवि तो हैं ही अपने समय के अच्छे पहलवान भी रहे हैं, अच्छे नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार और खिलाड़ी भी रहे हैं। किन्तु अन्ततः उनका कवि रूप ही सभी विधाओं पर हावी होता गया है। अंजन जी किसी सम्मान के लिए किसी के आगे-पीछे दौड़ना नहीं जानते थे, किसी की मिथ्या-प्रशंसा नही कर सकते, किसी दल या राजनीति से नहीं जुड़ सकते। वे सर्वात्म-भाव के पोषक हैं। उनके सभी है और वे सबके हैं। मानवीय विकार एवं दुर्बलतायें उनमें नहीं हैं। न कोई लोभ, न लालच न कोई महत्वाकांक्षा, न चाह, न कोई आसक्ति, न कोई ललक। कहीं कुछ नहीं। ये परमहंस रूप है। स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा है। सृजन में व्यतीत करने वाले कर्मयोगी हैं। अध्ययन, चिन्तन, मनन, सृजन और लोक कल्याणार्थ उनका शेष जीवन समर्पित है स्वभाव माधुर्य एवं विनम्रतापूर्ण है। हमेशा हंसते मुस्कुराते रहने वाले अंजन जी से जो भी मिलता है एक अभिष्ट छाप लेकर जाता है।

विद्या ददाति विनयम-विद्या ददाति पात्रताम्’ जन्मजात विनम्रता है। प्रतिष्ठा ही उनका धन है। इसी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के चलते गांव जवार के कुछ गिने चुने पतित लोग जलन एवं ईर्ष्या के चलते उन्हें कष्ट पहुंचाया करते हैं। हाथी चले बाजार, कुत्ते भौके हजार वाली बात है। कुत्तों का स्वभाव है भोकना और सिंह का स्वभाव है स्वाभिमान। अंजन जी के गीतों के सर्वाधिक प्रेमी उत्तर प्रदेश के पूर्वान्चल के लोक गीत गायक हैं। 1973 के बाद आकाशवाणी गोरखपुर के केन्द्र से पूर्वान्चल के गायकों ने अंजन जी के भोजपुरी गीतों का भरपूर प्रसारण किया।

चाहे सीमा की चौकसी करते जवान हों या खेतों में हल चलाते किसान हों। अंजन जी सर्वत्र गुनगुनाये जाते हैं। जब-जब याद आई भाई के दुलार तहरा, बलुआ ले ले जइह हमरो सामान हो कि पूछिहें जवान सुगना, बेटी भोरे-भोरे जब ससुरार जइहे, का कहीं सचहूं परान बाड़ऽ बदरा। बानी हम पपनी विछवले, तनि एनहों ताकी, एक दिन माता पिता के छाती के संसार जुड़ाई रे। सूनवे भाई रे भाई, राति बीते द धरती पर भोर होखे द तहके चुनरी रंगाइबि हम अोर होखे द” जैसे दर्जनो गीत फिल्मों से लेकर कैसेटों तक आज भी बजते सुनाई पड़ते हैं।

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