सुनील प्रसाद शाहाबादी जी के लिखल पुर्वांचल के दुःख

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मोतिहारी गोपालगंज सिवान सतकार
छपरा के मीठ पानी-आरा कड़ियार।

निहाल बक्सर बलिया-निरमल गंग धार
गहमर वीर सैन्य सपूत -संग साहितकार।

बदलल मजदूरी में गते गते किसानी,
आजमगढ़ देवरिया-गोरखपुर बेमार।

बन्हक गुजरात के-काशी बिसनाथ,
ठग बनारस आप ठगाइ बइठल बा यार।

गाजीपुर आ चंदोली-भदोही भी भूखा,
मिर्जापुर सोनभद्र भी चाटत बा आचार।

बस्ती जौनपुर खीर आ मऊ बहराइच
आ बसल पंजाब में सहे सोसन अपार।

इलाहाबाद प्रयाग मे-कहाँ अब उ आग
जहाँ से देश भर में -बनत रहे बेयोहार।

प्रतापगढ़िया एक ही -कहाउत ही रहल
अब त मरत एक के-देखे मिलके चार।

पढ़ल लिखल कर गइलें इहाँ से पलायन
दोसर राज में जोह ले लें आपन अधिकार।

बाहुबली गुंडन के हाथे-सता के लगाम
खाड़ भासा भोजपुरी द्रोपदी अस उघार।

ना पांडव कृष्ण सभा मे-के चिर चढ़ाओ
नोचे उ नेता बने -कर वानी बलतकार।

जात घात क पोंछ लमहर-लटकाई फिरेला
संस्कृति सभ्यता बीच-खाड़ करे देवार।

झोटा झोटी दे ले लंगड़ी इहाँ बड़ा प्रसिध
पुर्वांचल के खेल इहे बा कहीं का सरकार।

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