संस्कार भारती गाजियाबाद के मासिक संगोष्ठी

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संस्कार भारती गाजियाबाद अपना मासिक संगोष्ठी मे संस्कार भारती के पहिलका परब “नव संवत्सर” मनवलस। संस्कार भारती के ध्येय गीत आ सरस्वती बंदना के बाद भोजपुरी कवि आ संस्कार भारती शास्त्री नगर इकाई के अध्यक्ष जे पी द्विवेदी के संयोजन आ निर्देशन मे मुख्य अतिथि पूर्वाञ्चल भोजपुरी महासभा के अध्यक्ष अशोक श्रीवास्तव जी आ भोजपुरी कवि केशव मोहन पाण्डेय, कवियत्री वीणा वादिनी चौबे, मधु भारती, डॉ वीणा मित्तल आ बी एल बत्रा जी माई सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कइने।

एह अवसर हिन्दी आ भोजपुरी आउर संस्कृत के जवन त्रिवेणी बहल, उ इयाद करे जोग रहे। संस्कार भारती अपने विषय परक साहित्य संगोष्ठी खातिर जानल जाले। आजु के संगोष्ठी के विषय
“नव संवत्सर” रहे । संस्कार भारती शास्त्री नगर इकाई भोजपुरी के हस्ताक्षर कवि केशव मोहन पाण्डेय, श्रीमति वीणा वादिनी चौबे, गोष्ठी की अध्यक्षा श्रीमति मधु भारती, बी एल बत्रा, श्री अशोक श्रीवास्तव (मुख्य अतिथि) सहित 7 विशिष्ट लोगन के माल्यार्पण आउर प्रतीक चिन्ह देके सम्मानित कइलस। गाजियाबाद के भोजपुरी कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के उनुके भोजपुरी गीत संग्रह “जबरी पहुना भइल जिनगी” खातिर संस्कार भारती गाजियाबाद महानगर की अध्यक्षा डॉ वीणा मित्तल प्रशस्ति चिन्ह देके सम्मानित कइनी। आजु के गोष्ठी मे भोजपुरी के बोलबाला रहल । मुख्य अतिथि से लेके हिन्दी के वरिष्ठ कवि आदरणीय श्री महेश सक्सेना जी भोजपुरी गीत पढ़ने । गोष्ठी मे करीब तीन दर्जन कवि लोग अपने काव्य सरिता मे सभे के सराबोर कइने।

संस्कार भारती शास्त्री नगर इकाई के अध्यक्ष भोजपुरी कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी एह गोष्ठी आयोजित करे के अवसर देवेला डॉ वीणा मित्तल आ डॉ जे पी मिश्रा जी के आभार करत जब चइता “पिया बिन ससुरा न भावे हो रामा, नवके बरिस मे आ दूभर कइलस चलल डहरिया हो रामा, कलही मेहरिया से राग छेड़ने त फेर भोजपुरी मे सभे सराबोर हो गइल । केशव मोहन पाण्डेय आ वीणा वादिनी चौबे ओह रासधार के जहवाँ गति दीहने, ओहिजे विनोद पाण्डेय भोजपुरी हास्य से सभे गुदगुदवने।

आज मुख्य अतिथि श्री अशोक श्रीवास्तव के भोजपुरी गीत पर त सभे झूम उठल । अंतिम मे गोष्ठी के अध्यक्षा श्रीमति मधु भारती अपने गीत से गोष्ठी के अपने चरम पर पहुंचा दीहनी । गोष्ठी के सफल संचालन अदरणीया स्नेह भारती जी अंत तक सभे के बान्ह के राखे मे कामयाब रहनी । कुल मिला के गोष्ठी 4 घंटा ले चलल, जवन कबों कबों हो पावेला। आज त कहल जा सकत बा कि संस्कार भारती के ई गोष्ठी ढेर दिन तक सभे के जेहन मे रही

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