दिल्ली में मंचित होई ठाकुर के कुंइयाँ

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दिल्ली में नाटक त बहुते होला बाकी भोजपुरी नाटक के बात कईल जाओ त एकही गो संस्था बा ‘रंगश्री’। रंगश्री ही समय-समय पर भोजपुरी नाटक आ भोजपुरी नाट्योत्सव के माध्यम से भोजपुरिया संस्कृति आ संस्कार से लोग के अवगत करावत रहेला काहेकी रंगश्री के दर्शकन में लगभग 30% दर्शक गैर भोजपुरी भाषी बा लोग। भोजपुरिया लोग के भी मेट्रो शहर में भोजपुरी आ गाँव के माटी से जुड़ल कथा आ कथानक देखे के मिलेला त मन गदगद हो जाला। एही अभियान के आगे बढ़ावत रंगश्री आगामी 27 सितम्बर के दिल्ली के गोल मार्केट स्थित मुक्तधारा सभागार में भोजपुरी नाटक “ठाकुर के कुंइयाँ ” के मंचन करे जा रहल बा। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के मूल हिंदी कहानी पर आधारित ई नाटक के परिकल्पना, अनुवाद आ निर्देशन लव कान्त सिंह कर रहल बारन। नाटक में जातिवाद, छुआछुत आ अमीरी-गरीबी पर जोरदार प्रहार त भइले बा साथे-साथ एक ओर जहाँ मानवीय मुल्य में हो रहल गिरावट त दोसरा ओरी पानी जईसन ज्वलंत मुद्दा पर भी सोचे पर मजबूर करत बा। ई कहानी के भले ही प्रेमचंद जी अपना समय के समस्या पर लिखले बानी बाकी ई समस्या आजो समाज में बा आ पानी जईसन समस्या त विकराल रूप धरत जात बा। हाले में कर्नाटक आ तमिल नाडू में पानी के लेके ही झगड़ा हो रहल बा । एही सब मुद्दा के लेके कहानी में कुछ नाटकीयता जोड़ के नाटक के आउर जादा प्रभावी बनावल गइल बा। दिल्ली जइसन शहर में भोजपुरी नाटक क के एगो इहो सन्देश देवे के कोशिश रहेला की लोग जानो की भोजपुरिया संस्कृति फुहर-अश्लील गीत आ सिनेमा ना ह बलुक माटी से जुड़ल कथानक में बा असली भोजपुरिया संस्कृति। जादा से जादा भोजपुरी प्रेमी आवे आ एकर लुत्फ़ उठावे एहिसे नाटक में प्रवेश निशुल्क राखल गइल बा।

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