भोजपुरी के अनमोल हीरा भिखारी ठाकुर जी के पुण्यतिथि प धनंजय तिवारी जी के श्रद्धांजलि

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“आजू भोजपुरी के अनमोल हीरा भिखारी ठाकुर जी के पुण्यतिथि बा, अब हमरा जईसन आदमी खातिर श्रद्धांजलि देबे के सबसे निमन तरीका बा कि कुछ लिख के दियायु”
“बेटा”
रमेश के आजू भी निमन से इयाद बा। सांझी के समय रहे अउरी उ बाबूजी के साथे बाजार से लौटत रहले। बहुत बिजोड़ बरखा होखे लागल। छाता एक ही रहे अउरी उहो एकी ओर से फाटल। बरखा से उनके बचावे खातिर बाबूजी छाता उनके ओढा देहनी अउरी अपने लगनी भीजे। तब रमेश कहले कि बाबूजी रउवा छाता में आ जाई। हम के बूनी में भीगल निमन लागेला अउरी तब बाबूजी हँस के कहनी कि तू अभी छोट बाड़। बरखा में भिज के तहार तबियत ख़राब हो जाई।

एक दिन रमेश सांझी के खेल के वापिस अयिले त बाबूजी के हाथ में मकई के भूजल बाल रहे। रमेश पहिलही बाल खाके खेले गईल रहले अउरी बस एगो बाल बाबूजी खातीर रखल रहे। जोश में उनका धियान ना रहे कि उ आपन बाल खा लेले बाड़े अउरी उ कहले कि बाबूजी हमके बाल चाही। बाबूजी बिना कुछ सोचले उ बाल रमेश के दे देहनी काहे कि उहाँ के मालूम रहे कि रमेश के मकई के बाल बहुत पसन ह।

रमेश जब नौवी में पढ़े गईले त उनका सगरी संघतिया कुल के लगे नया साइकिल रहे जबकि उ बाबूजी के पुरान साइकिल से पढ़े जास। उनका कवनो दिक्कत ना होखे एकरा खातिर बाबूजी दू कोस पैदल चल के ट्रेन पकड़ी अउरी नौकरी पर आई जाई। फेरु एक दिन रमेश के अपना संघतिया कुल में हीन भईला के जान के उहाँ के gpf पर लोन लेके नया साइकिल खरीद देहनी। हालाँकि माई बहुत मना कईली।

रमेश जब बाहर पढ़े गईले त तय भईल कि महिना के 500 रुपया जाई उनका खर्चा के पर कवनो अईसन महीना ना रहे जब बाबूजी उनके 600 से कम भेजले होखी। एही खातिर एक बार माई कहबो कईली कि काहे रउवा उनके जरुरत से ज्यादा पईसा भेजेनी तब बाऊजी समझावत कहनी कि रमेश परदेश में रहे ले। केहू आगे ना पीछे। कही कवनो जरुरत ही पड़ गईल से केकरा से मांगे जयिहे। ऐ वजह से तनी ज्यादा पईसा जरूरी बा।

रमेश के निमन से इयाद बा एक बार माई के तबियत ख़राब रहे अउरी उनकर कपडा गन्दा रहे। बाबूजी जब आपन कपडा साफ़ करेनी बयिठिनी त रमेश के भी कपडा साफ़ करे लगनी अउरी तब माई खिशिया के कहली – इनकर कपडा रउवा काहे साफ़ करतानी। अब इ बड हो गईल बाड़े। इ आपन कपडा खुद साफ़ क सकेले। रउवा सगरो जिनगी इनकर ध्यान देबे खातिर रहेब का? अउरी तब बाबूजी हसी के कहनी कि -हां हम जले अपना पनाती के ना खेला लेब तबले हम जियबी अउरहम जबले जियब, रमेश के धियान दिहल हमार फर्ज बा।

तब ना बाऊजी के ही पता रहे ना रमेश के ही कि बाउजी के उमिर अतना कम होई।
माई के असमय चल गईला के बाद। बाबूजी हमेशा रमेश के साथे ही रहेनी। लेकिन अब त लागता कि बाबूजी के भी साथ ना रही। भला इहो भी उहाँ के उमिर बा मरे के। पिछला महिना त साठ के भईनी ह। पर ओहू से बड जिए के उहाँ के लालसा अउरी परिवार के प्रति प्रेम अउरी बफदारी। अभी त उहाँ के रमेश के लईका के लईका के भी कान्हा पर खेलावे के प्लान करत रहनी ह।

रमेश डॉ के केबिन से रिपोर्ट देखा के बाहर निकलल रहले अउरी डॉ के बात से उनकर खून पानी हो गईल रहे। एको डेग आगे ना बढ़त रहे अउरी उ बाहर बेंच पर थहरा के बयिठ गईल रहले। बस उनका लयिकाई से लेके अब तक बाबूजी के साथ बीतल बात इयाद आवत रहे।
बाबूजी के लीवर के एकदम खराब हो गईल रहे।

कुछ देर बाद थोडा हिम्मत आईल त उ वार्ड के तरफ बढले जहाँ बाबूजी भर्ती रहनी। समझ में ना आवे के बाबू जी के बताई या ना बताई।
ऐ द्वन्द में आखिर उनके बाबूजी के सच बतावे के ही पडल काहे कि बाबूजी के बार बार पूछला पर उ इ बात छिपा ना पवले।
फेरु वार्ड में बहुत देर ले चुप्पी रहला के बाद बाबूजी जिद के रमेश के वापस घरे भेज देहनि काहे से रमेश सबेरे से बिना कुछ खईले हॉस्पिटल में पडल रहले।

रमेश के त चल गईले पर बाऊजी सोचत रहनी। अब लीवर ख़राब हो गईल त ओकर एकही उपाय बा। लीवर बदला पर लीवर बदलल भी आसान नईखे। केहू लीवर देबे वाला चाही। पर लीवर दी के। रमेश त नौकरी पेशा बाड़े अउरी कही उनकर लीवर देहला के बाद भी कुछ हो गईल त। ओहू से बड बात कि लीवर बदले खातिर कम से कम 10 लाख के खर्च बा। उनका इलाज पर पहिलही रमेश लाखो खर्च क चुकल बाड़े। बात बस उहाँ तक ही त नईखे। तीन गो छोट लईका बाड़ सन, ओकनी के पालन पोषण अउरी पढाई में खर्च। ऊपर से 20 लाख के घर ले लेले बाड़े, ओहू पर 10 लाख के लोन बा। अब उ अतना पईसा कहाँ से ले अयीहे। उ जिनगी में कबो ना सोचले रहले कि उ रमेश के ऊपर बोझ बनिहे।

एक तरफ से जीवन के सच्चाई, त दूसरी तरफ परिवार के मोह, नाती नातिन कुल के मोह। केतना सपना रहे उनका कि उ अपना पनाती के अपना गोदी में लेस अउरी उ उनका कान्हा पर झूलो। लेकिन अब त इ लागता कि सपना ही रही।

बहुत देर सोचला के बाद बाउजी के चेहरा पर संतोष रहे। कवनो बात ना जेतना दिन रहनी, रमेश ठीक से त रखले। अब दुनिया में केहू अईसन नईखे जेकर सब सोचल सच होत होखे। 60 साल के जिनगी भी छोट ना होला। उ आपन जिनगी भरपूर जी लेले बाड़े अउरी अब उ अउरी बोझ रमेश के ऊपर ना डालीहे। बाउजी तय क लिहनी कि रमेश अयिहे त कही देब कि हमरा खातिर परेशान भईला के जरुरत नईखे। अब हमके वापस घर ले चल। जेतना दिन भी बा, हम बच्चन कुल के बिच बितायिब।

सब बात जानके रमेश के पत्नी के भी उहें कुल चिंता घेरले रहे जवन चिंता बाउजी के। पर उ कुछु ना कहलकाहे कि उनका मालूम रहे कि होई उहे जवन रमेश सोचिहे अउरी रमेश बचपन से आजू ले बाबूजी के साथ बीतावल कुछु ना भुलायिले।

बाऊजी के लाख मना कईला के बादो उहाँ के लीवर बदलाईल अउरी रमेश ही आपन लीवर देले बाड़े इ बात उहाँ के अस्पताल से घर लौटात समय रास्ता में पता चलल। बाबूजी के रमेश के देख अजीब सा ख़ुशी मिलत रहे। ओइदीन बाबूजी के बेटा के बाप भईल पर गर्व रहे।

काम्प्लेक्स में घुसला के बाद जब रिक्सा जब रमेश के बिल्डिंग के तरफ ना बढ़ के दूसरा बिल्डिंग के तरफ बढ़ल त बाबूजी के तनी चिंता भईल। उहाँ के तुरंत पूछनी कि काहे इ दूसरी ओर जा रहल बा। हमनी के त फ्लैट दूसरी तरफ बा अउरी तब मुस्किया के रमेश कहले कि अब हमनी के घर दूसरा बिल्डिंग में शिफ्ट हो गईल बा। आपन खरीदल घर काहे दूसरा बिल्डिंग में काहे शिफ्ट हो गईल बा इ समझे में बाउजी के ज्यादा समय ना लागल। उहाँ के जान गईनी कि उहाँ के लीवर बदले खातिर रमेश आपन फ्लैट बेच देले रहले अउरी अब उ भाडा पर शिफ्ट हो गईल रहले।

बाउजी के आंखी से लोर ढरके लागल। आजू रमेश जईसन बेटा के बाप होके उहाँ के अपना के दुनिया सबसे खुशनसीब आदमी समझ रहनी। उहाँ के रोआ रोआ रमेश के आशीर्वाद देत रहे अउरी कहत रहे – बेटा त बहुत लोग होला, पर बेटा के असली माने तुही चरितार्थ कईल।

लेखक: धनंजय तिवारी जी

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