दहेज प लिखल तारकेश्वर राय जी के दू गो कविता

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दहेज

बाप देखीं बेटा के, बोली लगवले बा |
देवे वाला ख़ुशी से, गर्दन झुकवले बा ||
मोल भाव होता, देखीं सपना के ||
शान से बेचता, केहू अपना के ||

अरमान के होखता, खुला ब्यापार |
नइखे पुछात, लईकी के बिचार ||
दहेज के भूख त, बढते जात बा ये भाई |
पइसा के मोल से, देखीं गुंजी शहनाई ||

दहेज मांगल त, अब बन गईल बा शान |
पाई पाई जोर के, पूरा कराता अरमान ||
कुरीति के निचे, आत्म सम्मान बा दबाइल |
दे के दहेज़ , आग में घिवे डलाइल ||

बीमारी ह समाज के , कानून से ना ओराई |
ना रोकाई त दिन दिन बढ़ी, एक दिन बौराई ||
दहेज़ के बदले, जहां होता लईकी के बिदाई |
शामिल न होखे केहू, जेमा दहेजलिआइ बा दिआइ ||

दहेज क चलनिया

देखीं बदल गईल, सभकर चलनिया
बदल गईल गांव शहर मालिक मलकिनिया
बदल गइले गुरु चेला, घर दुवार अउरी चोहनीआ
डहर त बदली गईल, बदलल मुहनिया

ना बदलल त एके बात, दहेज़ के चलानिया
बढ़ते जात बा, चाहे अजोर हो चाहे अन्हरिया
एके कोख से जनमेला, बेटा चाहे बेटी
एके नियर होखेला, गर गर्दन आ नरेटी

एके लाड से पाळेल, पढ़ावेल लिखावेल
जिनगी के निक जबून पाठ सिखावेल
बेटा तो बंश बेल, बेटी हिय बिया
खोजाई दमाद अइसन, जुड़ा जाए हीया

पढ़ लिख बेटी जब भइली सयान
दमाद खोजाये लागल दुनिआ जहान
पढ़ल लिखल लइकन के बोली लागल
सुनके दहेज बेटीहा के निदे भागल
दहेज में कमी देख बेटहा भागल

भाई, बाप सोचले, दहेज में बखरा दिआइ
जवन मांगी बेटहा, उ पूरा कइल जाई
हित नात अगुवा से, बिआह ठीक भइल भाई
निक बा दमाद , सुन नाच गइली माई

खोज खोज मंगाता, दहेज़ में समान
लागत बा सास ननद के हाथे बा कमान
इहे बा हमनीके, समाज के चलनिया
दहेज के साथ, ससुरा जाई बहिनिया

कवना मसकत से,दहेज़ जुटावल बा
कुल मांग पूरा होइ, इहे बत्तावल बा
दहेज देख के, सब खुश बा ये भाई
केहू के नेग मिली, केहू के बिदाई

देखीं समाज के गजब चलानिया
उड़ता नोट लुटे गवनीया बजनिया
मांगता नेग देखीं पंडित पवनिया
ना मिली मुँहमाँगा, ता चढ़ जहिये छनिया

पाई पाई जोड़ के, दहेज त दिआइल
कम दहेज के तबो काहे ताना सुनाइल
तिलक दहेज वाल किश्त ना ओराइल
देवरानी पतोह वाला नाता भहराईल

तारकेश्वर राय
ग्राम + पोस्ट : सोनहरियाँ, भुवालचक्क
गाजीपुर, उत्तरप्रदेश

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