विद्या शंकर विद्यार्थी जी के लिखल दू गो भोजपुरी गजल

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विद्या शंकर विद्यार्थी जी
विद्या शंकर विद्यार्थी जी

अँजोरिया में सँवर के पसर गइलीं हम
पतझर आवे से पहिले झर गइलीं हम

महक के रूप का ह गुलाब से जान लीं
दुनिया के रीत से मगर कँटहर गइलीं हम

रहे थाह ना पता केतना मंजिल बा दूर
सांस लेबे के मन से ठहर गइलीं हम

तोहरो सहर गाँव में बिरिछ कवनो होई
अपना वजूद के बृछ रहीं कबर गइलीं हम

जहाँ नफरत होई तहाँ बसिहऽ ना कबो
कँकड़ी लागल घइला प, चिहर गइलीं हम

दरद बढा़ देले बा रिश्ता करीब लाके
दरद बढ़ा देले बा आहिस्ता नसीब लाके

आपन बा दूर भइल डगर में बीचे छोड़ के
दरद बढ़ा देले बा रास्ता अजीब लाके

नजरि से दूर भइलऽ नजरि में बसा के
दरद बढ़ा देले बा वास्ता नगीच लाके

कहाँ से दूगो राही आके नसीब से मिलल
दरद बढ़ा देले बा विवशता अजीब लाके

रोवे के मन केकर ह हँस लिहला के बाद
दरद बढ़ा देले बा रिश्ता नगीच लाके।

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