संजय कुमार मौर्य जी के लिखल तीन गो कविता

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यह सभी रचनाएं भोजपुरी काव्य संग्रह आखर आखर जिंदगी से लिया गया है जिसके रचनाकार संजय कुमार मौर्य जी हैं।

नाव लेके मिटा देला केहू

नाव लेके मिटा देला केहू,
याद करके भुला देला केहू।

रात में आधी दियरी जरावे,
अउरी छिन में बुुता देला केहू।

प्रेम के हमरा अवसर बना के,
हमके कहीं झुका देला केहू।

रोज बनके रकीबे के साथी,
हमार जियरा जरा देला केहू।

प्रित के सभे चाहेला पावल,
प्रित कतहूँ कहां देला केहू।

जिंदगी रेत पर के इमारत,
देके हरका ढहा देला केहू।

बात – बात में बात एतना बढ़ गईल

बात – बात में बात एतना बढ़ गईल,
कि क्रोध के आगी कपार पर चढ़ गईल।

केहू दोसर ला मन में आगी रखले रहे,
बाकिर पहिले ऊहे समूचा जर गईल।

बाबा बहुत पहिले एगो पेड़ लगवलन,
आखिर असो डार-डार पर फर गईल।

हम अपना पसीना के कमाई खात रहलीं,
पर थरिया पड़ोसी की आंख में गड़ गईल।

जिनगी स्वर्ग भईल जवना मेहरारू से,
छोडे़ के बेर लांछन ओही पर मढ़ गईल।

ठोकर खा के आंख के पपनी खुलल तअ्,
भोर के भुलाइल रहे, सांझ के घर गईल।

मउगत आ जाई त बचाई के

मउगत आ जाई त बचाई के,
वक्त के गोड़ में बेडी़ लगाई के,

सफर में हमसफर साथ राखअ्,
गर ठेग लाग जाई त उठाई के।

घर के आगी त लोग बुुता देही,
बाकिर मन के आगी बुुताई के।

देखअ् सभे निर्बल के दबावत बा,
ईश्वर जेके उठइएं ओके दबाई के।

हम प्रेम की महफ़िल में खड़ा बानी,
अब दोस्त बनके हाथ मिलाई के।

रास्ता बा कि अमावस के अन्हरिया,
बनके पूनम जिनगी के डहर देखाई के।

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