रामचन्द्र कृश्नन जी के लिखल भोजपुरी कहानी पशु के करेजा

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परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प , रउवा सब के सोझा बा रामचन्द्र कृश्नन जी के लिखल भोजपुरी कहानी पशु के करेजा ( Bhojpuri Kahani Pashu ke kareja ) , पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा रामचन्द्र कृश्नन जी के लिखल भोजपुरी कहानी (Bhojpuri Kahani) कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह कहानी के शेयर जरूर करी।

माघ के महिना कड़कड़ाती सर्दी खतम भइला के बाद फागुन के महिना चढि गइल रहले, फागुन के फगुनी बयार सबके पोर पोर के हिलावति रहें,बसन्त अपने जवानी पर रहल, रहि रहि के फगुनी बयार सबके हिया के झकझोर देति रहें ,रूख परास सब मगन लउकत रहें, लइकन के झुंड के झुंड कबीर के आनन्द लेते रहे ते कहीं फाग के गुलजार रहे ते कहीं जोगीरा के भरमार सब अपने आनन्द आ उछाह में अन्हुआइल रहें।

एइसहि मदमातल, अलसाइल दुपहरिया ढरकि गइल रहल ,रमई काका जइसहि दुआरी पर डेंग रखले का कहत बांटें ? अरे सुनति बाडू हो ये बतसिया के माई रमई काका के एतऩा जबान बतासी के माई के बिजुरी अस लगल आ उ हडबडाइल घबराइल दन्न दे पूछति बाटी,अरे का कहत बाटी ए निरहुआ के बाबू, रमई काका लें रूअइले मुस्किअइते भीतर के उजास मनवे में दबवले ज़बान में कहलें ।

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कहत ई बांटी की निरहुआ के देखहरू लोग आवे वाला हवें कुछ अर इंतजाम कइले हउ कि नाई । रमई काका केएतना जबान निरहू के माई के गोली अस लगल आ उनकर माथा एतना गरम भइल की का कहतिबाटी ये निरहुआ के बाबू देहि जनि लाव अर इंतजाम करें वाला तूही हव की घरमें से निरहुआ के माई सबेरहि से ई जूनि हो गइल का मुहवा में जाबा दिहल रहल हे बतासी के माई के एतना बाति सुनते रमई काका के अकिलिए सट्ट होगें आ उ फेरहेहरा के नरमहि जबान में बोललें अरें तनि सुनबू की अपने रमायन शुरू कइलें रहबू हमतें निरहुआ के शादी के नाहि क दिहले रहलि लेकिन जान नाई बचत बा लोग आ रहल बा त का करी ।

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निरहू के माई के माथा अबहिन ठंडा नाई भइल रहल आ उ हाथ चमका के आखिं मटका के पट्टे जबाब दिहली कि आई नाई त का करि तुहरा के लेखा घुर बनि के बइठल रहि, जेकरा घर मे सयान बेटी बा ओकरा नींद आवत बा , उ का बा तुहरहू ते बेटी बा ,एतना बडी हो गइल कब्बो काने पर जू रेगंत बा रमई काका कहलें ,अरे हमरे बतसिया ते अबहिन साते साल के न बा ,रम ई के मुहं से अबहिन एतने निकरल रहल कि उनकर मलिकिन कटकटा के कहली तुहरे बतसिया अबहिन सातें साल के बा एहि लाई दीदी के बेटी के आठ साल के गरभ जोरि के बिआह ह़ो गइल आ तुहरे बतसिया अबहिन सातें साल के लगलि बा।

रमई कहलें देखबू ए निरहूं के माई अरे अब शादी बिआह उ नाई रहि गइल कि तुहार दादा अइलें चट्ट दे दिन मोकाधराइल आ पट्ट दे बिआह हो गइल । अरे अब ते बिआहे खातिर गोरू बैल खान मोल भाव हो रहल बा एसे हम कहली कि पइसा कउडी के कुछ इन्तजाम हो जा तब कही जाई।

रामचन्द्र कृश्नन जी
रामचन्द्र कृश्नन जी

रमई के एतना बाति सुनि के‌ निरहूं के माई के आंखि मे लोरि आ गइल उनके दन्न दे अपने बिआहें के इयाद आ गइल ,निरहू के माई बडमनई के बेटी रहली,लेकिन भगवान के मरजी से उनके दादा के पातर दिन आ गइल रहल,बतासी के माई के दादा अपने सोना अस बेटी खातिर दुआरदुआरे बिआहे के भीख मगंलें लेकिन केहूं इंसान मे मनई के करेजा ना लउकल जे उनके सहारा दे। आखिर उनकर दादा हारि मानि के रमई अस मनई से शादी कईलें कि जिनगी मे कबहूं सुख के सबेरा ना भईल।

रमई निरहूके माई के रोज रोज के बिरहि से बेकल हो गइल रहलें आ उ एक दिन सबेरहि मगरू के लेके शादी के बिचार में चललें,मगरू गावें के अनुभवी मनई रहलें उनकें गावें के नियम रहें कि केहूं के कवनों नया काम शुरू होखें ते मगरू से राय बाट जरूर लिहल जा।

मगरू रमई से कहलें मगरू भाई शादी के तनिकों फिकिर न कर जो मगरू के जिनगी रहि ते तोहरे बेटी के निमन घर आ वर मिललें में तनिको देरी ना लगी आव चल आजू हम धनेसर भाई किहा चलत हई जवार के जानल मनई हवें हम उनके दुरदिन में एक दिन बहुत काम आइल बाटी आज हम तोहरा खातिर उनके लइका के शादी जरूर तय कराइब रमई मगरू के एतना जबान सुनि के गदगद हो गइलें, मगरू रमई के लेके धनेसर के घरे पहुचलें, मगरू के देखते धनेसर फूला के गदगद हो गइलें धाई के मगरू के चरन लगलें, दन्न दें आसन लगवलें , मारे सनेह के व्याकुल हो गइलें कहलें मगरू भाई हम बडा भागशाली बाटी कि तू बहुते दिने पर हमरे ओर धियान दिहल ह , एक दिन तू हमार भगवान होके हमार रक्षा कइलें रहल तूहें पाके हमार करेजा सूप अस हो गइल बा भइया बहुत दिन पर हमें तुहार सेवा करेके अवसर मिलल ह मगरू कहलें धनेसर भाई हम गरीब के एह सनेह से बढि के कवनो सेवा ना हे भइया

।तू पुरइनि के पात हव तोहरा नीचे जे आइल उ छहां के गइल जुडा के गइल,आज हम तोहरा लग करेजा फूला के आइल बाटी कि तू हमके ओइसहि जुडास देब जइसे गगरी के जुडाइल पानी पिआसल मनई के करेजा जूड करेला।

धनेसर भाई ई हमरे गांव के रमई हवें इनकर बिटिया तुहरा लइका के पूरहर जोग बा अगर ई काम क देब त तुहार लईका त सुख करबे करि तोहरहूं सुख में कवनो बिआधा नाई आई।मगरू के बाति सुनि के धनेसर के माथा चकरा गइल ,उनके किहा केतना बरदेखुआ अइलें लेकिन दहेज आ बिआहें के शर्त सुनि के सबकर हवाशा छूटि जा रमई त एकदम निरधन मनई रहलें।

धनेसर कहलें मगरू भाई हम तुहरे नेकि के कब्बो ना बिसारब लेकिन शादी बिआह एके दिन ह़ोला ,अगर तोहरा अकवारी में हम आवत होई त बात पक्कीए समझ। मगरू कहलें धनेसर भाई सब दिन तू हमरे कोरा में रहल आ आजू अइसन काहें कहत बाट।

धनेसर कहलें भइया आजू काल्हि लइका के खिअवलें पहिरवलें पढवलें लिखवलें में बडिए भरती बा एसे अगर शादी बिआह में इ भरती नाई उपराई त कइसे काम चली। अगर रउरा के शादी करेके बा त पहिलें कुछ मोटहन रकमि से हाथ गरम करी ओकरे पीछे लइकी सब गुन में आगर होखे के चाही , ओकरा के पीसे कूटें भोजन बनावें पातर पातर चिपरी पाथें सिलाई कढाई करे आ सास ससुर क सेवा करे के हुनर होखे के चाही , मगरू कहलें धनेसर भाई लइका के पढाई से लें के नार कटाई तक के पइसा हम लड़की वालें सेही वसूल करब धनेसर भाई हम पइसा त नाई दे पाइब लेकिन लइकी हीरा के कनी देत बाटी धनेसर कहलें मगरू भाई लइकी त पाछे बा पहिलें तिलक बरक्षा ही त सब देखि ।

रमई हाथ जोरि के कहलें धनेसर भाई तू हमरे समाज के बडहन मनई हव कवनो कमी के तुहरे जइसन लोग ही पूरा क सकेलें ,हमरे लइकी के डेग कही डगमगा जाई त मोछि उखरि जाई एह पर तनि धियान देके हम गरीब के सहारा द ।

धनेसर कहलें चाहे केहूं के मोछि उखरे चाहें केहूं के पगरी अगर अइसन बाति बा त उहें डारि नवाव जवन पकरि पाव हमरे लगें तनिको जगह नाई बा नाई त तुहके निराश नाई करति, सगरो मिनती मनुहार कइला के बाद धनेसर तनिको नाई पसिजलें मगरू आ रमई जवन आशा लेके आइल रहलें कुलि पर पानी फिर गइल, आ दुनो जनि इहें बतिआवत राहि धइलेंकि भाई बडका में केहूं अइसन ना बा जे ई कहें कि पइसा वालन के त बहुत रिश्ता मिल जाई हम अपने समाज के ओह मनई के उठाइब जेके नरई तरई के ठेकान नाई बा ।

बीसो दुआरि कड़ला के बाद रमई के कहि जगह नाई मिलल,दसो नह जोरला आ पगरी पटकला से उनके चानी के बार खियागें सुन्नर से लेकें टुअर वर सबके करेजा एके बोली बोलल रमई घरे आकें निरहूं के माई से कहलें,निरहूं के माई बेटी के बिआह खोजला से नीक जहर खा के मरि गइल ठीक बा, आ सबेरही रमई जहर खाकें परलोक के राहि ध लिहलें, तबहिए से उनके दुआरि पर दुख दरद के नीर ढरकत बा, लेकिन सनेह के बादर कहो ना मड़रात बा ।

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