रामखेलावन : संजीव कुमार जी

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परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आयीं पढ़ल जाव संजीव कुमार जी के लिखल भोजपुरी कहानी रामखेलावन, रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा संजीव कुमार जी के लिखल भोजपुरी कहानी अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।

नैनवा गांव के एगो किसान रहलन, रामखेलावन भगत। गांव में खेती करस। कुछ बीघा ले खेत रहे। बढ़िया बढ़िया खेत रहे। खेतवन में खेती करस औरि ओहिके पइसा से आपन घर के खरचा चलावस। उनकर खेत बड़ी उपजा रहे, उनकर खेत खरीदे ला गांव के महाजन के ललचाई नजरिया खेतवे पर गड़ल रहे। धान गेहू खूब उगावस।

अनाज के जाइके बजरिया में बेच देस। पइसा भेटा जाव। गांव में बाढ़ भी कभी कभी आवत रहे। एकरा से सबके परेशानी रहे। एक साल बाढ़ आइले रहे त उनकर सब खेत पनिए में डूब गइल और सड़ गइल, फसल बर्बाद हो गइल। गांव में इतना पानी आइल की उ अपन परिवार के हितई में पहुचा अइलन। पलनिया में पानी घुस गईल रहे।त उ कबो कबो पलानी पर सुत जास।एक दिन नेपाल ढेरे पानी छोड़ दिहलस, बस तब का ई सुतल रहलन पलानी पर। अचानक उनकरा सुतला में बुझाइल की पलनिया हिलत डुलत काहे बा। आंख खोल के देखलन त, पलानी नाव बन गइल बा। आ उ कहा बा पता नइखे चलत, सगरी ओर पानीए पानी बा।

एक जगे जब पलानी पेड़ से टकराईल तब अंजोर भइला पर पता चलल की 3 कोस दूर चल गइल बाड़न। पता चलल की गांव में सब कोई के घर दुआर, समान सब बह गईल बा। बचावे वाला लोग आइल त, उनकरा के नाव पर बैठा, के ले गईल लोग। कुछ दिन के बाद पानी भाग गइल तब आपना गावे अइलन। अब त सब खत्म रहे। सब केहु खाली दुःख में लउके। लइका , मेहरारू सब के लगे कपड़ो ना रहे। अब उनका लगे एको रुपिया ना रहे।

मजबूरी में केहु केहु से मंगलन, लेकिन सबके हालत खराब रहे, सब कोई पइसा के दिक्कत झेलत रहे लो। लोग कहल की चल ना जा महाजन के लगे, कुछ उधारी ले ल, जब होई तब ओकर लौटा दिह। रामखेलावन कहलन, “ना भाई ना, उ सुई घोप घोप के कर्जा के सूद लेवे ला, ओकर नजर हमरा जमीनों पर बा, हम ना जाएम।”

दु तीन दिन घुमला के बाद, महाजन के लगे चली गइलन। महाजन से पचास हजार रुपिया 6 महीना के करार पर औरि 5 रुपया सैकड़ा ब्याज पर लिहलन। अब रुपया लेके फेरु से आपन काम मे जुट गइलन। फसल उपजावस। ओकरा बाजार में बेचे लगलन, 6 महीना में सब लौटावे के रहे। महीना बीतते बीतते महाजन के आदमी रामखेलावन के लगे सूद के उसले खातिर हाजिर हो जावे, सूद दे देस, लेकिन मुर मुड़ी पर पड़ले रहो। 6 महीना ले ब्याज देहलन, 6 महिना के बाद 50 हजार इकट्ठा ना हो पाइल, अब फेरु से करजा मुड़ी पर चढले रह गइल।महाजन एक दिन रामखेलावन के बुलइलन।

कहलन की आपन जमीन में से एक बीघा दे द तहार सब करजा हम खतम कर देहब। रामखेलावन के आपना जमीन से बड़ी परेम रहे। कहलन की, हजुर हम हाथ मे अभी दम बा हम मेहनत करब आ राउर करजा चुकाइब, लेकिन आपन माटी आपन पहचान ना बेचब। महाजन कहलन, त ठीक बा देखत बानी कबले हमर करजा चुकावत बाड़, एक दिन जरूर खेतवा बेचब। रामखेलावन, उनकर मेहरारू, और उनकर बच्चा तीनो मिल के खेत मे काम करे लागल लो, खूब मेहनत होखे लेकिन आमदनी बढ़ ना पावे।

एक दिन संजीव मास्टर साहब ओहि डगरिया से जात रहलन। तब तक एगो आवाज आइल, परनाम गुरु जी।
संजीव सर घुम के देखनी , ई त रामखेलावन आपन पूरा परिवार के लेके खेतवे में लागल बाड़न, “का हो रामखेलावन, खुश रह, का हाल चाल बा”

“गुरु जी, ठीक नइखे, महाजन के करजा से दबल बानी, का करी सन, सब लागल बानी सन” रामखेलावन कहलन। संजीव सर उनकर सब बात सुनलन। संजीव सर कहनी कि, सुन एगो काम बतावत बानी, सब्जी के खेती कइल जाव, नकदी फसल ह, एहीसे बहुत फायदा होइ। रोज तु ओकरा बाजार में बेच दिह औरि कबो हमरा संगे त बैंक में चलिह, तहार एगो बचत खाता खोला जाई , एगो चेक बुक भी ले लिआई, तु ओहिमे पइसा बचा बचा के ओकरा बैंक में जमा करत जा औरि महाजन के पैसा चेक में भर के लौटाई दिह। राम खेलावन अब संजीव सर के कहला अनुसार सब्जी के खेती करें लगले, रोज कुछ न कुछ निकले, कबो घेवड़ा, कबो लउकी, कबो भिंडी, कबो तरोई, कबो कोबी…. धीरे धीरे उनकरा खेत ने व्यापारी लोग भी आवे लागल, अब धीर धीरे पइसा आवे लागल।

रामखेलावन बैंक में पइसा जमा करत गइलन। अब पइसा जब खूब जमा हो गइल, त रामखेलावन एक दिन चेक पासबुक लेके संजीव सर के पास आइलन, संजीव सर, महाजन के मूर औरि सूद मिलाके जेतना रुपया भईल, ओतना महाजन के नाम से चेक काट दिआइल।
“महाजन जी परनाम”
“का हो रामखेलावन, ढ़ेर रुपया हो गइल बा,कहिया मिली।” महाजन।

हमार बही खाता निकाली , हिसाब सब काट दी, राउर सब करजा हम लाइल बानी। बही खाता निकलल। हिसाब भइल। संजीव सर जेतना बतइले रहनी ओतना हिसाब आइल, बही खाता कटा गइल, रामखेलावन चेक महाजन जी के देहलन।
“अरे बाप रे, रामखेलावन तहार हेतना परगति, ई केंगन हो गइल हो, तनी हमनी के भी बताव ” ,महाजन।
“सब संजीव मास्टर साहब के किरपा औरि आशीर्वाद बा”
रामखेलावन कहलन। औरि मुस्कुरात , करजा के बोझ से उबर के बड़ी खुश दिखत रहलन। धीरे धीरे रामखेलावन गांव के लोग के भी उन्न्त होखे के गुड़ बतावे लगलन। लोग भी उनकरे खानी नकदी फसल के खेती करे लागल लोग। लोग के जीवन भी सुधरे लागल। रामखेलावन के लोग, अब किसान भाई, किसान काका , के तरह से बुलावे लोग।

“संजीव सर जी, परनाम, सर तनी हई, हमरा खेत के सब्जी बा, लेते जाइ, इनकार मत करी, रउआ आज ले कुछु नईखी लेहले, हम अपना हाथ से सब तुड़ले बानी”, रामखेलावन।

संजीव सर उनकर परेम देख के सब्जी के झोरा ले लिहलन, धीरे से रामखेलावन के बगली में 100 रुपया के नोट रख के कहलन, तहार मेहनत के कीमत बा। एके रख ल, हमर आशीर्वाद समझ के।

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