दीपक सिंह जी के लिखल भोजपुरी कविता कह के चल गइल

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जेकरा कवनो लूर ना रहल,
उहो कह के चल गइल
साफ करत रह गइनी
हमके सजी कचर के चल गइल

ई ठीक बा,अइसे होला हम
समझावत रह गइनीं
रे बकलोल, ते चुप्पे रहु
अइसन कह के चल गइल

राहता में हाथ बढ़वले रहनीं एके
साथे चले ला
लँगड़ी मार के, उहे हमके
देखीं गड़हा में भर गइल

सोचनीं कि अबसे कुछ
ना करेंम कुछ ना बोलेम
तबे एक जाना पर देखनीं
बड़का बिपत पड़ भइल

बहुत रोवला के बाद
हँसल देखते लोगवा के
जाने काहें ई चेहरा
आँखिन में गड़ गइल

दीपक सिंह, कलकत्ता

दीपक सिंह जी
दीपक सिंह जी

रउवा खातिर:
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देहाती गारी आ ओरहन
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