भोजपुरी भाषा का क्षेत्र

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भोजपुरी भाषा का क्षेत्र

भोजपुरी भाषा मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों और बिहार प्रान्त के पश्चिमी जिलों की मातृभाषा है। इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश की भूतपूर्व सरगुजा स्टेट के निवासी भी भोजपुरी भाषा का बोली के रूप में प्रयोग करते हैं। आसाम के चाय बागानों तक भोजपुरी भाषा लोग पाये जाते हैं। इस प्रकार उत्तर प्रदेश और बिहार के अतिरिक्त महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, आसाम तथा अन्य राज्यों में भी इस भाषा के बोलने वाले हैं।

देश के अलावा विदेशों में भी इस भाषा का क्षेत्र विस्तार है। वर्तमान समय में भोजपुरी भाषा मारिशस, फीजी, केनिया, युगाण्डा, दक्षिणी अफ्रिका, गुआना, वर्मा, सिंगापुर, नेपाल आदि अनेक देशों में फैली हुई है।

मारिशस, गुआना और वर्मा में मुख्य रूप से राजनैतिक स्तर पर भोजपुरी भाषी लोगों का वर्चस्व है। इसके अतिरिक्त श्रीलंका में भोजपुरी बोलने वाले लोग हैं।

अंग्रेज इतिहासकारों व पुरातत्त्ववेत्ताओं तथा भाषा-विशेषज्ञों ने भोजपुरी भाषा के नाम की उत्पत्ति भोजपुर ग्राम या भोजपुर परगने से मानी है। भोजपुरी क्षेत्र की पूर्वी सीमा सोन और गण्डक से होती हुई सीवान, जिसके पूर्व से मागधी भाषा–भाषी क्षेत्र प्रारम्भ होता है, उस सीमा तक पूरब में भोजपुरी क्षेत्र की सीमा तक पूरब में भोजपुरी क्षेत्र की सीमा स्वीकार की जाती है। भोजपुरी भाषा की भौगोलिक सीमा दक्षिण में मिर्जापुर से प्रारम्भ होकर उत्तर की ओर जौनपुर और फैजाबाद जनपद की सीमा में प्रवेश कर जाता है। मिर्जापुर से भोजपुरी की सीमा रेखा दक्षिण-पूर्व बिहार की ओर घूम जाती है अर्थात् नागपुर के कुछ क्षेत्र तक जाती है। भोजपुरी क्षेत्र की उत्तरी सीमा नेपाल की तराई क्षेत्र को समेट लेती है। भोजपुरी के दक्षिण में उड़िसा क्षेत्र का कुछ अंश और मध्य प्रदेश का आंशिक भाग माना जाता है।

जार्ज ग्रिसर्यन के अनुसार भोजपुरी बिहारी की एक बोली है, जो विस्तृत क्षेत्र में बोली जाती है। उत्तर हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण मध्य प्रान्त के जसपुर राज्य तक तथा पूरब मुजफ्फरपुर के उत्तरी-पश्चिमी भाग से लेकर पश्चिम बस्ती तक इसका विस्तार है। इसका क्षेत्रफल लगभग अस्सी वर्ग किलोमीटर है। उसे ही भोजपुर क्षेत्र कहते हैं, जिसकी आबादी बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में पाँच करोड़ से अधिक है।

भोजपुरी पूर्वी अथवा मागधी परिवार की सबसे पश्चिमी बोली

भोजपुरी भाषा का क्षेत्र
भोजपुरी भाषा का क्षेत्र

है। डॉ. ग्रियर्सन ने पश्चिमी मागधी को बिहारी के नाम से अभिहित किया है। बिहारी से ग्रियर्सन का तात्पर्य उस भाषा से है, जिसकी मगही, मैथिली तथा भोजपुरी तीन बोलियाँ हैं। बिहार की तीनों बोलियों के विस्तार क्षेत्र की दृष्टि से भोजपुरी का स्थान सर्वोच्च है। उत्तर में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण में मध्य प्रान्त की सरगूजा रियासत तक इस बोली का विस्तार है। बिहार प्रान्त के रमहाबाद, सारन, चम्पारन का रॉची, जशपुर स्टेट, पालपऊ के कुछ भाग तथा मुजफ्फरपुर के उत्तरी पश्चिमी कोने में इस बोली के बोलने वाले निवास करते हैं। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के बनारस (जिसमें बनारस स्टेट भी सम्मिलिम है) गाजीपुर, बलिया, जौनपुर के अधिकांश भाग, मिर्जापुर, गोरखपुर, आजमगढ़, बस्ती जिले के हरैया तहसील में स्थित कुवानो नदी तक भोजपुरी बोलने वालों का आधिपत्य है।

भोजपुरी भाषा का नामकरण

भोजपुरी भाषा का नामकरण बिहार प्रान्त के शाहाबाद जिले में स्थित भोजपुर नामक गाँव के नाम पर हुआ है। शाहाबाद जिले में बक्सर सब-डिवीजन में भोजपुरी नाम का एक बड़ा परगना है। इसी परगने में ‘नया भोजपुर’ और ‘पुराना भोजपुर दो छोटे-छोटे गाँव है जो भूतपूर्व डुमराँव राज्य की राजधानी हुँमराँव नगर से दो तीन मील उत्तर गांगा के निकट बसे हैं। ये दोनों गाँव आसपास और भोजपुर नामक प्राचीन नगर के ही स्थान पर स्थित हैं इन्हीं गाँवों के कारण इस बोली का नाम भोजपुरी पड़ गया है।

डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी ने मागधी बोली तथा भाषाओं को तीन वर्गों में विभाजित किया है। आपके अनुसार भोजपुरी पश्चिमी-मागधी वर्ग, मैथिली तथा मगही, मध्य मागधी वर्ग तथा कोला, असमिया तथा उड़िया, पूर्वी-मागधी वर्ग के अन्तर्गत हैं।

भोजपुर के प्राचीन नगर के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम भी भोजपुर पड़ गया जो आगे चलकर इस नाम के परगने तथा जिले के नाम का कारण बना। प्राचीन काल में भोजपुर नगरी के दक्षिण तथा वर्तमान आरा जिले के उत्तर का अर्धभाग ही इस प्राप्त की सीमा था। सन् 1871 के जेम्स रेनल’ के एटलस में आरा के उत्तरी भाग का नाम रोतास (रोहतास) प्रान्त मिलता है।

इस प्रकार अठारहवीं शताब्दी में भोजपुर एक प्रान्त था। धीरे-धीरे इसका विश्लेषण रूप, भोजपुरी, उस प्रान्त के निवासियों तथा उसकी बोली के लिए प्रयुक्त होने लगा। चूंकि इस प्रान्त की बोली ही इसके उत्तर, दक्षिण तथा पश्चिम में बोली जाती थी, इसलिए भौगोलिक दृष्टि से भोजपुरी प्राप्त से बाहर होने पर भी इधर की जनता तथा उसकी भाषा के लिए भोजपुरी शब्द ही प्रचलित हो चला है

“यह एक विशेष बात है कि भोजपुर के चारों ओर ढाई करोड़ से अधिक जनता की बोली का नाम भोजपुरी हो गया। प्राचीन काल में भोजपुरी का यह क्षेत्र–‘काशी’, ‘मल्ल’ तथा ‘पश्चिमी मगध एवं ‘झारखण्ड (वर्तमान छोटा नागपुर) के अन्तर्गत था। मुगलों के राजत्व-काल में जब भोजपुर के राजपूतों ने अपनी वीरता तथा सामरिक शक्ति का विशेष परिचय दिया, तब एक ओर जहाँ भोजपुरी शब्द जनता तथा भाष दोनों का वाचक बनकर गौरव का द्योतन करने लगा, वहाँ दूसरी ओर वहाँ दूसरी ओर वहा एक भाषा के नाम पर, प्राचीन काल के तीन प्रांतों को, एक प्रांत में गूंथने में भी समर्थ हुआ।

इस प्रकार सतरहवीं-अठारहवीं शताब्दी में मागधी भाषा के इस रूप में बोलने वाले भोजपुरी कहलाये। भोजपुरिया सम्भवतः युद्धप्रिय होते हैं, अतएव मुगल सेना तथा उसके बाद 1857 के भारतीय विद्रोह तक ब्रिटिश सेना में उनका बड़ा सम्मान रहा। बिहार में प्रचलित अनुलिखित पद में भोजपुरियो के युद्धप्रिय स्वभाव की चर्चा हैइस में भोजपुरिया शब्द से भोजपुरी लोगों से तात्पर्य है। पद इस प्रकार है।

भागलपुर के भगेलिया, कहलगाँव के ठग
पटना के देवालिया, तीनू नामजद
सुनि पावे भोजपुरिया
त तीनू के तूरे रगद

ग्रियर्सन कृत बिहारी भाषाओं तथा उपभाषाओं के सात व्याकरण भाग एक (ग्रियर्सन–सेवेन ग्रामर्स आव बिहारी लँग्वेज, पार्ट वन) के मुखपृष्ठ पर एक पद उद्धृत है, जिसमें भोजपुरिया’ शब्द का प्रयोग भाषा के अर्थ में हुआ है, जो इस प्रकार है

कस कस कसमर किया भगहिया, का भोजपुरिया की तिहुतिया।

‘क्या सर्वनाम के लिए ‘कसमर (सारन जिले का एक स्थान) में ‘कस’, ‘मगही’ में ‘किन’ भोजपुरी में ‘का’ तिरहुतिया में ‘की’ होता है।

इन विवेचनाओं से स्पष्ट हो जाता है। मुगलकाल के अन्तिम काल से भोजपुरी अथवा भोजपुरिया शब्द जनता में लोकप्रिय हो चुका था। भाषा के अर्थ में लिखित रूप में इसका सर्वप्रथम उल्लेख सन् 1789 ई. में मिलता है। सर जार्ज ग्रियर्सन ने अपने लिग्विस्टिक सर्वे के प्रथम भाग में पूरक अंक पृष्ठ 22 में एक उदाहरण दिया है, जो इस प्रकार है-1789, दो दिन बाद, सिपाहियों का रफ रेजीमेण्ट जब दिन निकलने पर शहर से होता हुआ चुनारगढ़ की ओर जा रहा था, तो मैं गया और उसे जाते हुए देखने के लिए खड़ा हो गया। इतने में रेजीमेण्ट के सिपाही रुके और उनके बीच के कुछ लोग अन्धेरी गली की ओर दौड़ पड़े। उन्होंने एक मुर्गी पकड़ ली और कुछ मूली और गाजर भी उठा लाए। लोग चीख पड़ेतब एक सिपाही ने भोजपुरिया बोली में कहा-‘इतना अधिक शोर मत करो, आज हमलोग फिरंगियों के साथ जा रहे हैं, किन्तु हमलोग चेत सिंह की प्रजा हैं और कल उनके साथी भी आ सकते हैं। तब मूली, गाजर का भी प्रश्न न होगा, बल्कि तुम्हार बहू-बेटियों का होगा।

उत्तर भारत में भोजपुरियों को ‘पूर्बिया और उनकी बोली को ‘पूर्वी’ कहते हैं। ‘पुरुब’ और ‘पूर्बिया के सम्बन्ध में हाब्सन–जान्सन पृष्ठ संख्या 724 के अनुलिखित विवरण उपलब्ध हैं-‘उत्तर भारत में ‘पूरब बनारस तथा बिहार प्रान्त से तात्पर्य है, अतएव ‘पूर्बिया उन्हीं निवासियों को कहते हैं। बंगाल की पुरानी फौज के सिपाहियों के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता था, क्योंकि उनमें से अधिकांश उन्हीं प्रान्तों के निवासी थे।

भोजपुरी भाषी प्रदेश के भीतर भी, स्थान-भेद से, विभिन्न स्थानों की बोलियों का नाम उन स्थानों के नाम पर कहा गया है, जैसे—बनारस की बोली को बनारसी, छपरा की बोली को ‘छपरहिया’ । बस्ती जिले की भोजपुरी का दूसरा नाम सरवरिया भी है। आजमगढ़ के पूर्वी तथा बलिया के पश्चिमी क्षेत्र में भी बोली जानेवाली बोली को ‘बँगरही’ कहते हैं। बांगर क्षेत्र से उसका तात्पर्य है, जहाँ गंगा की बाढ़ नहीं जाती।

श्री राहुल सांकृत्यायन जी ने बलिया के तेरहवें वार्षिकोत्सव के अपने भाषण में भोजपुरी भाषा के स्थान पर ‘मल्ली’ नाम का प्रयोग किया था। एक लेख भी ‘विशाल भारत’ (कलकत्ता) में इसी आशय से निकाला था। इसका आधार उन्होंने बौद्धकालीन 16 जनपदों में से ‘मल्ल जनपद को माना था। इसकी ठीक सीमा क्या थी, यह आज निश्चित रूप से वही बतलाया जा सकता है। जैन कल्पसूत्रों में नव मल्लों की चर्चा है; किन्तु बौद्ध ग्रन्थों में केवल तीन स्थानों-‘कुशीनारा’, ‘पावा’ तथा ‘अनुप्रिया’ के मल्लों का उल्लेख है। इनके कई प्रसिद्ध नगरों के नाम मिलते हैं।

‘कुशिनारा तथा ‘पावा विद्वानों के मतानुसार युक्तप्रान्त के गोरखपुर जिले में स्थित वर्तमान ‘कसया तथा पड़रौना ही हैं। मल्ल की भॉति काशी का भी उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। काशी में भी भोजपुरी बोली जाती है, अतएव मल्ल के साथ-साथ काशी का होना भी आवश्यक है। राहुल जी ने इस क्षेत्र की भोजपुरी को काशिका नाम दिया है, किन्तु भोजपुरी को ऐसे छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त करना अनावश्य और अनुपयुक्त है। आज भोजपुरी एक विस्तृत क्षेत्र की भाषा है। यही कारण है कि प्राचीन जनपदीय नामों को पुनः प्रचलित करने की अपेक्षा इसी का प्रयोग वांछनीय है। इस नाम के साथ-साथ कम से कम तीन सौ वर्षों की परम्परा है।

भोजपुरी की सीमा विभिन्न राज्यों की राजनैतिक सीमा से भिन्न है। भोजपुरी के पूरब में इसकी दो बहनों, मैथिली तथा मगही का क्षेत्र है। इसकी सीमा गंगा नदी के मार्ग का अनुसरण करती हुई रोहतास तक पहुँच जाती है। यहाँ से वह दक्षिण पूरब का मार्ग तय करती हुई आगे चलकर राँची के लपेटों के रूप में एक प्रायद्वीप का निर्माण करती है इसकी दक्षिणी पूर्वी सीमा राँची के 32 किलोमीटर पूर्व तक जाती हैतथा बोदे के चारों ओर घूमकर वह खर्षवान तक पहुँच जाती है।

सोन नदी को पार कर भोजपुरी अवधी की सीमा का स्पर्श करती है। तथा सोन नदी के साथ वह 83: देशान्तर रेखा तक चली जाती है। इसके बाद उत्तर की ओर मुड़कर वह मिर्जापुर के 23 किलोमीटर पश्चिम की ओर गंगा नदी के मार्ग से मिल जाती है। यहाँ से यह पुनः पूर्व की ओर मुड़ती है। गंगा को मिर्जापुर के पास पार करती है तथा अवधी को अपने बाएँ छोड़ती हुई सीधे उत्तर की ‘ग्राण्ट ट्रंक रोड’ पर स्थित ‘तमंचावाद’ को स्पर्श करती हुई जौनपुर शहर के कुछ किलोमीटर पूरब तक पहुँच जाती है उसके बाद घाघरा नदी के मार्ग का अनुसरण करती हुई वह अकबरपुर तथा टांडा तक चली जाती है।

घाघरा नदी के उत्तरी बहाव मार्ग के साथ पुनः यह पश्चिम में 82: देशान्तर तक पहुँच जाती है। यहाँ से टेढ़े मेढ़े मार्ग से होते हुए बस्ती जिले के उत्तर पश्चिम नेपाल की तराई में स्थित यह सीमा ‘जरवा’ तक चली जाती है। यहाँ पर भोजपुरी की सीमा एक ऐसी पट्टी बनाती है, जिसका कुछ भाग नेपाल सीमा के अन्तर्गत तथा कुछ भारतीय सीमा के अन्तर्गत आता है। यह पट्टी 24 किलोमीटर से अधिक चौड़ी नहीं है तथा बहराइच तक चली गई है, यहाँ थारू बोली जाती है, जिसमें भोजपुरी के ही रूप मिलते हैं।

समकालीन भोजपुरी के विस्तार को देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि इस समय यह दो राज्यों-उत्तर प्रदेश और बिहार में फैली हुई है। वस्तुतः यह उत्तर प्रदेश के पूर्वी तथा पश्चिमी बिहार की भाषा है। इसके बोलने वालों की संख्या भी अन्य दो बिहारी बोलियों मैथिली तथा मगही के संयुक्त संख्या से लगभग दोगुनी है।

दो राज्यों के विभक्त होने पर भी भोजपुरियों की संस्कृति एवं रीति-नीति में कोई अन्तर नहीं आ पाया है। पारम्परिक विवाह सम्बन्ध, भोजपुरी भाषा सम्मेलन, परदेश में भी एक दूसरे से मिलने पर मातृभाषा में ही सम्भाषण की प्रथा ने पुनः वस्तुतः दो राज्यों में विभक्त भोजपुरियों को एकता के सूत्र में आबद्ध कर रखा है। यह होते हुए भी यदि समस्त भोजपुरी भाषा–भाषी एक ही राज्य में आ जाते तो इनमें एकता की भाषा और भी दृढ़ हो जाती। तब सामुहिक रूप से ये भारतीय राष्ट्र के अभ्युत्थान में और भी अधिक सहायक होते।

भौगोलिक आधार पर ग्रियर्सन ने भोजपुरी के पाँच उपभेद बताये हैं। बिहार के अन्दर मुख्यतः शाहाबाद, सारन, चम्पारन और पलामू जिले में भोजपुरी बोली जाती है। छोटानागपुर के अन्दर भी भोजपुरी बोलने वाले कुछ लोग हैं, मगर यहाँ की भोजपुरी का रूप बहुत विकृत है

भोजपुरी के मुख्य पाँच रूप बताये गये हैं-

  1. शुद्ध भोजपुरी
  2. पश्चिमी भोजपुरी
  3. नागपुरिया
  4. मधेसी
  5. थारू

शुद्ध भोजपुरी बिहार प्रान्त के अन्दर केवल शाहाबाद और सारन जिले में तथा पलामू जिले के कुछ हिस्सों में और युक्तप्रान्त के अन्दर बलिया, गाजीपुर (पूवी आधा) तथा गोरखपुर (सरयू और गण्डक के बीच) में बोली जाती है। पलामू और दक्षिण शाहाबाद के खरवार जाति के लोगों द्वारा बोली जाने वाली भोजपुरी को ‘खरवारी’ कहा जाता है।

पश्चिमी भोजपुरी बिहार में नहीं बोली जाती। यह फैजाबाद, आजमगढ़, जौनपुर, बनारस, गाजीपुर (पश्चिमी भाग) और मिर्जापुर (दक्षिणी भाग) में बोली जाती है। नागपुरिया छोटानागपुर की खासकर रॉची की भोजपुरी को कहते हैं। इस पर विशेषकर मगही का और कुछ पश्चिम की छत्तीसगढ़ी का प्रभाव है।

डॉ. ग्रियर्सन ने भोजपुरी को चार भागों में विभक्त किया है-

  1. नगपुरिया- सदानी (सोन) के दक्षिणी अंचल, रॉवी, पलामू (बिहार), जसपुर (मध्यप्रदेश) बंगाली–मगही-उड़िया आदि क्षेत्र को भी स्वीकार किया जाता है।
  2. पश्चिमी- इसके अन्तर्गत आजमगढ़, बनारस, गाजीपुर, (गंगा के बाये तट भाग तथा पड़ोस के अंचल मिर्जापुर, जौनपुर के कुछ अंचल, कालिका या बनारसी, गाजीपुर, जौनपुर, बांगरी, आजमगढ़ क्षेत्र मान्य है।)
  3. उत्तरी– इसके अन्तर्गत गोरखपुर, देवरिया (उत्तरप्रदेश) आरा, चम्पारन (बिहार), सरवरिया (फैजाबाद), बस्ती के राप्ती, घाघरा, गोरखपुरिया, सीवान आदि स्वीकार किये जाते हैं।
  4. दक्षिणी- इसके अन्तर्गत भोजपुर, बलिया, रोहतास, गोपालगंज का उत्तरी-पूर्वी गंगा अंचल आदि क्षेत्र की मान्यता है।

साहसी भोजपुरी लोगों ने अपने शौर्य तथा पराक्रम के बल पर अनेक उपनिवेशों में भी अपना निवेश बना लिया है। मारीशस, फीजी, ट्रीनीडाड, ब्रिटिश गाइना आदि द्वीपों को बसाने का श्रेय इन्हीं भोजपुरियों को प्राप्त हैजो वहाँ आज से एक सौ वर्ष पहिले शर्तबन्दी कुली के रूप में गये थे। परन्तु अपनी कठोर मेहनत और मजदूरी के कारण इन द्वीपों को शस्य श्यामला भूमि बना दिया। मारीशस तथा फीजी टापुओं पर निवास करने वाले 70 प्रतिशत व्यक्ति भोजपुरी भाषाभाषी हैं।

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शोधकर्त्ता : कु. रीता

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