चंद्रघंटा माई | नवरातन के तिसरका दिन | निर्भय नीर

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मनई जीवन अंधरिया में भटक के खत्म ना हो जाए, कुटिल, तामसी, दुष्ट, राक्षसी प्रवृत्ति संसार में फइल के धर्म आ मानवता के हानि ना पहूँचा देव, एही सभ के ठीक करेला, दैत्यन के अनाचार, अनीति आ उनकर नाश करेला,नव शक्ति महामाई के तिसरकी रूप चंद्रघंटा माई के जानल जाला। चंद्रघंटा माई के लिलार पर घंटा जइसन अर्धचन्द्र बा, जवना से इहाँ के नाम चंद्रघंटा पड़ल। इहाँ के स्वर के देवी भी कहल जाला। इहाँ के उपासना कइला से साधक पराक्रमी आ निर्भय बन जाला।

चंद्रघंटा माई | नवरातन के तिसरका दिन
चंद्रघंटा माई | नवरातन के तिसरका दिन

चंद्रघंटा माई असुर के विनाश करे खातिर अवतरित भइली। जे भयंकर दैत्य सेना के संहार क के सभ देवता लोग के उनकर भाग दिअवली। इहाँ के मेधा शक्ति भी हईं। इहाँ के किरपा से सभ शास्त्रन के ज्ञान क्षण मात्र में हो जाला। इहाँ के मूहँ पर हमेशा मंद मुस्कान, आ निर्मल शरीर से तेज निकलत रहेला। इनकर देह सोना जइसन चमकत रहेला। इहाँ के दसो हाथ खड्ग, भाला, तलवार, वाण, माला, कमंडलु आदि अस्त्र शस्त्र से शोभत रहेला। इहाँ के सिंह पर हरदम विराजल रहेनी।

अइसन मनमोहक रूप देख के भी महिषासुर राक्षस के क्रोध आ गइल आ उनका के मारे खातिर उद्धत भइले, ई आश्चर्य के बात रहे। बाकि जब उहे रूप क्रोध में उदित सूर्य जइसन लाल आ भौंह तन के चढ़ल धनुष जस भयंकर हो गइल त ई देख के महिषासुर के तुरंते होश उड़े लागल ।

काहे कि यमराज के क्रोधित विकराल रूप देख के भला केकर परान ना निकल जाई। इहाँ के जब खुश होखिले त सउंसी जगत के अभ्युदय हो जाला आ जब खिसिया के क्रोधित हो जानी त तुरंते कईगो कुलन के नाश क देवेली।

निर्भय नीर जी
निर्भय नीर जी

कहल जाला कि देवी चंद्रघंटा जब राक्षस समूहन के संहार करे खातिर धनुष के टंकार कइली, घंटा के ध्वनि जोर से बजवली आ उनकर सवारी शेर जब दहड़ले त दशो दिशा कांपे लागल।सभे राक्षस गण आपन कान पकड़ के धरती पर बइठ गइलन आ अपना प्रताप, बल से कुल्ही असुरन के मुआ दिहली।

माई चंद्रघंटा के वर्णन दुर्गासप्तशती के कई गो स्थानन पर कइल बा। जेकर पूजा उपासना कइला से मनवांछित फल के प्राप्ति होखेला। योग साधना करे वाला साधक लोग के मन मणिपुर चक्र में चल जाला। जवना से सभे साधक के देह से एगो तेज निकले लागेला। मणिपुर चक्र जाग जाला आ कुल्ही सांसारिक परेशानियन से मुक्ति मिल जाला।

एह से आईं सभे आजु के दिन माई चंद्रघंटा के अराधना, पूजा, उपासना क के उनका से आपना खातिर मनोवांछित फल देवे के निहोरा कइल जाव ताकि हमनियो में धीरता, निर्भरता, निर्भयता के साथे साथ सौम्यता आ विनम्रता के विकास होखो।

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