दीपक तिवारी जी के लिखल 7 गो भोजपुरी कविता

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सास पतोहि के झगड़ा

सास पतोहि के घर के झगड़ा कबो ना ओराई,
भूल के केहू कबो केहु के ना करिलो बड़ाई

घर घर के विथा कहानी बहुते दुःख दाई बा,
केकरा के समझावल जा चुप रहला में भलाई बा।

बात बात में एक दिना सास दिहली गरियाई,
नया नोचर बानी पतोहि कहली खैर मनाई।

देती तोहार जवाब बुझँल हम नया ढंग से,
तूहो का बुझँतु भेंट भइल बा कवनो दबंग से।

होई इज्जत आपन बचावें के त दुरे रहिहँ हम से,
आज बोल दिहलु फेर ना बोलीहँ गिरे लागी धम से।

तू हमरा के डेरवावत बाड़ू अइले भइल चार दिन,
आवते रहन देखाई दिहलु हो जइबू कवडी़ के तीन।

लूर सहुर सिखलु नाही खाली जानsतारू लड़े के,
बाप माई बतलवले ना कइसे बोलल जाला बड़े के।

बाप माई के दुरे राँख उनुकर काहे लेलु हँ नाँव,
अतना तोहार हिम्मत तू चली गइलू हमरा गाँव।

कहा कहि होते होते दुनु जानी में गइल बजड,
लाज शरम तनिको ना का छोट होखस का बड़।

आइल हल्ला सुनीं के सभें फरका फरका हटावल,
फरियावल लो झगड़ा केहू तरे गइल सलटावल।

सास किन्चित कहि मिले नींक बहू करे वाली सेवा,
समझे एक दूसरा के आपन ना दीपक करे भेवा।

गुरु जी पधरनी दुवार

रउवा ढेर दिन पर गुरु जी पधरनी दुवार,
अवसर दिहनी हमरा के करे के सत्कार।

हाल चाल कुशल मंगल आपन बताई,
दिहीं आशीष शिर पर हथवा फेराई।
मकसद बताई लेके अइनी का विचार…
अवसर दिहनी हमरा के करे के सत्कार।

धन्य हो गइनी हम महल में पाके,
रउरी चरणीयाँ में मस्तक झुँकाके।
खुँश बाटे आज सभ राज दरबार…
अवसर दिहनी हमरा के करे के सत्कार।

गुरु जी के दरसन कइल लो चारो भाई,
लगही बइठल लो चारो आसन लगाई।
रउरी कृपा से बदले दुनियाँ के व्यवहार…
अवसर दिहनी हमरा के करे के सत्कार।

राजा दशरथ सेवा में ना कइले कवनो कमी,
आ एने गुरु वशिष्ठ जी सधले रहले दमी।
उत्साहित सम्मुख जुटल रहे परिवार…
अवसर दिहनी हमरा के करे के सत्कार।

इच्छा कुछो होखे त बोलीं करि प्रकट,
केहू रउरी शरण में होला ना करप्ट।
कहs तानी रउवा से हम बार,बार…
अवसर दिहनी हमरा के करे के सत्कार।

खुशी आइल बाटे घर में ढेर दिन के बाद,
रउवा दिही आशीर्वाद सभे रहे आबाद।
सुखी रहे सम्पन्न हमार जग संसार
अवसर दिहनी हमरा के करे के सत्कार।

इयाद अइबे करि

कुछ बात होला जवन इयाद अइबे करि,
मन से निकली कबो ना भूलइबे करि।

सोचेंला सभें अपना अतीत के बारे में,
नैना लोराई जाला देर लागेला टारे में।
दईबा दगा दिहलस दोषी होले हरि…
मन से निकली कबो ना भूलइबे करि।

लाख कोशिश करें चाहें घर से हो दूर,
ना विसरेला कबो इयाद आवेला जरूर।
एकरा से कबो केहू ना भइल बा बरी…
मन से निकली कबो ना भूलइबे करि।

सोचीं के होला खुँशी बचपन के बात,
आँगनवा में खाइल दुनु हाथे दाल भात।
कुछ घाव होला जवन कबो ना भरी…
मन से निकली कबो ना भूलइबे करि।

मन मानत नइखे

ई मन मानत नइखे कहिं तोहरा बिना मीत,
एके कइसे समझाई हम गाई के कवन गीत।

बाटे जिद्दीआइल हठ छोड़े नइखे चाँहत,
मिले ना आराम एकरा तनिको सा राँहत।
कइसे करीं काबू हासिल एकरा प जीत..
एके कइसे समझाई हम गाई के कवन गीत।

रहेला उदास हरदम मुँह लरकवले,
सभ काकाज दूर रहें टरकवले।
सुध बुध गवाई कुल्हि देले बा हित..
एके कइसे समझाई हम गाई के कवन गीत।

रहे व्याकुल बेचैन मिले खातिर अकुताइल,
हमरा दीपक तिवारी आज ले ना बुझाइल।
होला काहें ना मिलन जब कवनो नइखे भीत..
एके कइसे समझाई हम गाई के कवन गीत।

कुछो के ढंग ना सीखलस चिलनवाँ

कहेंला लोग बुरबक हउएँ फलनवाँ,
कुछो के ढंग ना सीखलस चिलनवाँ।

एको पईसा के ना बुद्धि रहन बा,
इहो बेचारा त बहुते महन बा।
एकरा के गारी रोज देले जननवाँ..
कुछो के ढंग ना सीखलस चिलनवाँ।

दीपक तिवारी जी
दीपक तिवारी जी

लेके सउसे के लाठी चले गावेंला गाना,
ओकरा इहो पता ना कि हउएँ गाना।
बाँहे माथे प पगरी बघारेला शानवाँ..
कुछो के ढंग ना सीखलस चिलनवाँ।

केहू कुछो कहे त बिरंगा जाला झट से,
जानल ना बुझल फेड़ चढ़ी जाला फट से।
हरमेश खाड़ आपन राखेला कानवाँ..
कुछो के ढंग ना सीखलस चिलनवाँ।

बड़ा सनकल रहे हर घरी उदमादल।
मुड़ी ऊपर क के देखत रहेला बादल।
लात खाते रहे तबो छोड़े ना बानवाँ..
कुछो के ढंग ना सीखलस चिलनवाँ।

कुछ साच्चो कहे त लोग ना पतियाला,
चट्टी चौराहा प आए दिन पिटाला।
जब बेसुरा आपन तानेला तानवाँ..
कुछो के ढंग ना सीखलस चिलनवाँ।

मुर्गा बोले से पहिले जाला रोज जागि,
सूर्य उगे से पहिले देला सेज त्यागी।
सुने ना एक केहू के माने कहनवाँ..
कुछो के ढंग ना सीखलस चिलनवाँ।

सरस्वती वंदना

हर राग लय छंद में हो सुर ताल बन्द हो,
श्रद्धा से पूजता हूँ तुम तो खण्ड खण्ड में हो।

करू आपकी उपासना माँ तू मुझे ज्ञान दो,
जग में नाम कर सकू ऐसा कुछ वरदान दो।

दया करो माँ कर दो मेरे जीवन में उजाला,
जब तक चलेगीं सांसे जपता रहूँगा माला।

मान लो तुम कहना माँ वीणा के बजइया,
कर जोड़ निवेदन कर रहा हूँ पड़ के तेरे पइया।

माँ दुनियाँ में बन के उभरु मैं आला,
माँ कृपा बरसाओ हो मेरा बोलबाला।

तुम जो माते चाहँ दो तो मुश्किले आसान हो,
तुलसी सूरदास जैसा विश्व में पहचान हो।

तुम्हे कैसे क्या बताँ तुम सब जानती हो,
दीपक जलाओ देवी बात क्यों न मानती हो।

कल्याण करो जग का हम प्राणियों पर दया,
रखना सदैव सब पे माँ अपनी तुम साया।

जय भोजपुरी, जय भोजपुरिया

सभका के सिखावेंला रहन अउरि लुरियाँ,
जय भोजपुरी, जय भोजपुरिया।

बोली हमरा भावेला खुँशी बड़ा मन पावेला,
माई भाषा के इयाद दिलावें सभसे मेल करावेंला।
सभका के इक जुट करेला रहे ना देला दुरियाँ…
जय भोजपुरी, जय भोजपुरिया।

रिस्ता नाता के बंधन में सभका के ई बाँहेंला,
पेयार मोहब्बत ई सिखलावें बैर ना कबहुँ साधेला।
सभ कर सभें मान करें सभका में रहें सहुरियाँ…
जय भोजपुरी, जय भोजपुरिया।

माई के जवन लोरी रहें उहो रहे भोजपुरी में,
जनम मरण सभ एहिजे होला अपना एहि पूरी में।
ताल मेल बइठा के आजो गितियाँ गावें बहुरियाँ…
जय भोजपुरी, जय भोजपुरिया।

गाँव देहात के हई कहिंले चौड़ा क के छाती के,
हमरा से जनि अझुरहिहँ हम तुर देब तोहरा बाति के।
पोखरा पोखरी कुदनी हम बानी लोटाइल धूरियाँ…
जय भोजपुरी, जय भोजपुरिया।

मन परेला आजुओ हमार घरवाँ रहे माटी के,
बात का कहिं ओहँ बेरा के मड़ई अउरि टाटी के।
होले जब उत्साहित दीपक चढ़ि जाला सुरियाँ…
जय भोजपुरी, जय भोजपुरिया।

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