महेंदर मिसिर जी के तीन गो रचना

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एके गो मटिया

एके गो मटिया के दुइगो खेलवना
मोर सँवलिया रे, गढ़े वाला एके गो कोंहार
कवनो खेलवना के रंग बाटे गोरे-गोरे
मोर सँवलिया रे, कवनो खेलवना लहरदार
कवनो खेलवना के अटपट गढ़निया
मोर सँवलिया रे, कवनो खेलवना जिउवामार
माटी के खेलवना एक दिन माटी मिलि जइहें
मोर सँवलिया रे, आखिर माटी होइहें बेका
कहत महेन्दर मिसिर, अबहू से चेतऽ
मोर सँवलिया रे, मानुस तन मिले ना बार-बार

राग कीन्हों

राग कीन्हों रंग कीन्हों, चातुरी अनेक कीन्हों
संग आ कुसंग कीन्हों लागे हाथ झोली में
सास्तर आ पुरान पढ़े भाषा सब देसन के
विजय पत्र लिहलों जाइ देस-देस बोली में
महल आ अटारी तइयारी सब भाँति कीन्हों
अइसे ही बितायों निसिबासर ठिठोली में
द्विज महेन्दर घोड़ा रथ हाथी क पीठ चढ़ि
अंत में चढ़ेंगे आठ काठ की खटोली में

महेन्दर मिसिर
महेन्दर मिसिर

हमनी के छोड़ि

हमनी के छोड़ि स्याम गइले मधुबनवाँ से, देइ के गइले ना
एगो सुगना खेवलना, राम देइ के गइले ना
हम बिरहिनियाँ के जियते जरवले से, देइ के गइले ना
दिल में बिरहा के अगिया, राम देइ के गइले ना
उनहीं कारन हम लोकलाज छोड़नी से, होइए गइले ना
स्याम गुलरी के फुलवा, राम होइए गइले ना
बँसिया बजा के स्याम पगली बनवले से, फँसिए गइले ना
ओहि कुबरी का सँगवा, राम फँसिए गइले ना
बालपन के नेहिया भुलवले कन्हइया से, तेजिए गइले ना
स्याम भइले निरमोहिया, राम तेजिए गइले ना
कहत महेन्दर स्याम भइले निरमोहिया, से भुलिए गइले ना
मोरा नान्हे के पिरीतिया, स्याम भुलिए गइले ना।

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