माया शर्मा जी के लिखल बिसरल भोजपुरी कथ्था

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“नानी का करताड़ू, हम खेलि के आ गइनी। आव न$ …बिछाव तरइया बइठल जाव”-नेहा नानी के बोलावत कहली। नानी तरई लियाके बिछा दिहली,तउलक ऐगो दूगो लइकवो आके बईठि गइलेंसो।

नानी बइठिके बेना डोलावे लगली।अब नेहा कइसे चुप रहें।लगली कथ्था के जिद्द करे।नानी कहली-“आरे!साँसो लेबे देबू कि नाहीं,अपने …एतना हउल भइल बा कि रहि नइखे जात।
“नेहा कुछ देर ले लइकन से काना-फूसी करे लगली, बाकिर केतना देर ले। फेरु लगली जिद्द करे।अबकी नानी टारि ना पवली।”कवन कथ्था कही बताव?” “उतरी बकरी वाला”-नेहा चहकत कहली। “त..हुँकारी भर”-नानी कथ्था कहे लगली।

कथ्था शुरू भइल

उतरी बकरी सुतरी तान।
चलबू बकरी पुरुबी बन?
पुरुबी बन में का बा?
लाल-लाल सिपहिया बा।
दूनू कान कटवले बा।
परती पर सुतवले बा।
परती परके बेनियाँ।
ओपर बइठे कनियाँ।
कउवा कहाँर बा।
मइनी दमाद बा।
केकर बेटी हऊ?
लखनू कोहाँर के।
कहाँ बियहल बाड़ू?
राजा की दुवार पर।
कवन धन पवलू?
हाथी-घोड़ा,
लाल सिन्होरा,
नाक में के नथिया,
बुलाक मेंके डोरा।
(नेहा के नाक धके हिलावत)
एइसन पतोहि अइली,
धरु नकलोला।”

सब लइका हँसे लगलें सो। नेहा लगली हुनुके -“ई छोटी चुकी रहलह, एही में के एगो अउरी बा कह…. कह$।
“नानी फेरु कहे लगली–

“उतरी बकरी सुतरी तान।
चलबू बकरी पुरुबी बन?
पुरुबी बन में का बा?
लाल-लाल सिपहिया बा।
दूनू कान कटवले बा।
परती पर सुतवले बा।
परती पर के बेनियाँ।
ओपर बइठें भइया-भउजी।
भउजी के लइकवा रोवता।
रोवे द खखबनरा के।
मोरा कवन दुख बा।
सोरे कट्ठा ँखि बा।
बैलन के गेंड़-भूसा,
भँइसिन के खोइया।
मरदन के रस-पानी,
मउगिनि के महिया।

“सुन लिहलू?”-आजु एतनें,बड़ी गर्मी बा।सब जाने अपने-अपने घरे जा लोग,फेरु बिहने कथ्था होई।” लइका हँसत “ठीक बा”कहत अपने घरे चलि गइलें।

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